
मंडला राष्ट्रीय स्वास्थ्यअधिकर अभियान और जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय ने आज विश्व स्वास्थ्य दिवस के अवसर पर एक जन घोषणा जारी किया है जिसे अमूल्य निधि राकेश चदौरे राजकुमार सिंहा राहुल यादव मोहन सुलिया विनोद पटेरिया मध्य प्रदेश कैलाशमीणा अनिल गोस्वामी हेमलता राजस्थान सुरेश राठौड़ डॉक्टर घनश्याम दास वर्मा उत्तर प्रदेश सुहास कोल्हेकर महाराष्ट्र के संयुक्त विमर्श के बजरी किया गया है मसौदा में उल्लेख किया गया है की देश में स्वास्थ्य व्यवस्था काफी चुनौतीपूर्ण बनचुकी है हम सब ने कोवीड 19 महामारी के दौरान देखा है कि स्वास्थ्य सेवाएं जनता की पहुंच से दूर हो गई थी और लोगों तक मुफ्त कम खर्चे में गुणवत्ता पूर्ण स्वास्थ्य व्यवस्था उपलब्ध करवाने में वर्तमान सरकार विफल रही पूरी दुनिया सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवाओं की पैरवी कर क्रियान्वित कर रही है भारत में भी सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था को मजबूत करके प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं को सख्त शर्तों के साथ क्रियान्वित करने की आवश्यकता है पिछले 10 सालों में जनता का स्वास्थ्य पर खर्च बढ़ गया है राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रोफाइल 2022 के अनुसार देशमें स्वास्थ्य पर लगभग 3 चौथाई खर्च परिवारों द्वारा। वहन किया जाता है जिसका सीधाअसर पहले से ही कमजोर वंचित और गरीबों को कर्जकी जाल में फंसा देता है अस्पताल में भर्ती होने के 40 प्रतिशत से अधिक प्रकरणों में इलाज के लिए पैसों की व्यवस्था या तो संपत्ति बेचकर या कर्ज लेकर पुरी की जाती है लगभग 82 प्रतिशत बाहा रोगी देखभाल निजी क्षेत्र से प्राप्त करते हैं जो लगभग पुरी तरह से अपनी जेब से खर्च करके पूरा किया जाता है यह गरीबों के लिए अक्सर चुनौतीपर्ण होताहै जहां एक ओर विश्व स्वास्थ्य संगठन स्वास्थ्य पर सकल घरेलू उत्पाद का 5% खर्च करने की सिफारिश कर रहा है वहीं भारत में सकल घरेलू उत्पाद का मात्र 1 2% राशि स्वास्थ्य सेवाओं के लिए आवंटित किया जा रहा है राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन प्राथमिक सेवाओं को मजबूत करने के उद्देश्य से क्रियान्वित किया गया था परंतु पिछले कुछ सालों से राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन का बजट लगातार काम किया जा रहा है सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था को बढ़ाने और मजबूत करने की जगह वर्ष 2019 में नीति आयोग ने जिला अस्पताल को निजी हाथों में सौंपने की शुरुआत कर चुका है उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश नीति आयोग इस जन विरोधी नीति को लगू करने में अग्रणी है यह आम जनता की आर्थिक और सत्ताधारी राजनीतिक लूट का आधार बनेगा जरूर हमारी सरकार सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करने के बजाएं बीमा आधारित स्वास्थ्य सेवाओं को प्राथमिकता दे रही है जबकि सरकारी आंकड़ों के अनुसार ही देश में आधेसे अधिक जनता बीमा आधारित स्वास्थ्य सेवाओं से दर है और आयुष्मान भारत योजना जनता छोटे से हिस्से को कवर करता है उसमे भी भ्रष्टाचार के अनगिनत मामले सामने आए हैं चुनावी बॉन्ड घोटाले में यह स्पष्ट रूप से सामने आया है की 35 अग्रणी फार्म कंपनियों ने 799,66 करोड़ का चंदा दिया है जो सरकार द्वारा केंद्रीय बजट 2024 25 में फार्मस्युटिकल उघोग के विकास के तहत आवंटित राशि के आधे से अधिक है दवा कंपनियां दवा की किमते बढ़ा रही है जिस पर लगाम लगाने की बजाय सरकार उनसे चंदा ले रही है जिसके वैक्सीन परीक्षण में सही नहीं निकले उन्होंने भी चंदा लेकर व्यापार से कमाई की छूट देना अवैध नहीं अमानवीय कार्य हुआ हो राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 5 के अनुसार देश में 67, 1% बच्चे कुपोषित हैं और लगभग 57% महिलाएं खून की कमी से ग्रसित है आज देश में असमानता गैरबराबरी अपने चरम पर हैं वर्तमान में देश के 1% अमीरों के पास कुल आय का 22, 6%हैं हिस्सा उनके पासहै रिजर्व बैंक के ताज बुलेटिन के अनुसार बिना किसी सामाजिक सुरक्षा किफायती स्वास्थ्य सेवाओं और रोजगार गारंटी के आभाष में 23 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे आ गए हैं